मेरा हौसला था
गिराने वालों ने कब तरस खाया, ये मेरा हौसला था,सम्हालता रहा ।। हर कदम पर बाधाएं मिली मुझको, फिर मंजिल की तरफ बढ़ता रहा ।।
गिराने वालों ने कब तरस खाया, ये मेरा हौसला था,सम्हालता रहा ।। हर कदम पर बाधाएं मिली मुझको, फिर मंजिल की तरफ बढ़ता रहा ।।
अब बहारें भी मेरे घर में,आती नही है, अब हवाएं भी तेरा,संदेशा लाती नही है ।। किस ओर चले गए,तुम छोड़कर मुझको, ये सदायें भी
अब अपने किरदार से, इंसाफ कर दिया जाए, अंधेरे घर में अब एक,चिराग रख दिया जाए । जब तक कोई भूखा सोए, मेरे देश में
कब तक पिंजड़े में तड़पते रहेंगे, कब इन पंखों को हम फैलाएंगे । हम स्वतंत्र नभ पर विचरण करने वाले, अब इस पिंजरे में न
विनाश हुआ कौरव वंश का, पांडवों ने विजय थी पाई युधिष्ठिर का राजतिलक करके, द्वारिका को लौट गए कन्हाई, जाने क्यूं धर्मराज का, ह्रदय बहुत
अंग्रेजी वाले साल की, अंग्रेजी में ही बधाई हो । बहार मिले हर कदम पे, कोई न उदासी छाई हो, पुष्पों की बगिया महके, सुगंध
मैं ही इस जग रचयिता हूं, मैं पालनकर्ता भी कहलाता हूं । मैं ही परमब्रह्म,परमेश्वर, कण कण में नजर मैं आता हूं ।। मैं धरा
न कोई उत्साह है, न कोई उल्लास है । शीत के आक्रमण से, तन मन सब बेहाल है ।। ये कैसा नया साल है ये
सब जन उसके अपने हैं,वो मदन गोपाल सबके हैं, एक हाथ में मुरली अपने,दूजे में सुदर्शन रखते हैं ।। माखन को कभी चुराते हैं,गिरवर को