स्वीटी जैन
स्वीटी जैन

स्वीटी जैन

स्वीटी जैन (दिल से), शाहगढ, जिला सागर. ©स्वीटी जैन

बचपन की होली

कहाँ गये वो दिन जब घर घर होली थी, केमिकल का भय नहीं मन में होली थी। सन्नाटो का काम नहीं, हुड़दंगों की होली थी।

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बसंत जैसे मेरा प्रेम हो

बसंत ऋतु के आगमन पर जैसे बगिया फूलों से महक जाती है, वैसे उन्हें देख मेरी पलकें शर्माकर आँखों से चिपक जाती है। हरे भरे

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बचपन की होली

कहाँ गये वो दिन जबघर घर होली थी,केमिकल का भयनहीं मन में होली थी। सन्नाटो का काम नहीं,हुड़दंगों की होली थी।मनमुटाव का कोई नामनहीं,भलेचंगो की

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बसंत जैसे मेरा प्रेम हो

बसंत ऋतु के आगमन परजैसे बगिया फूलों से महकजाती है,वैसे उन्हें देख मेरी पलकेंशर्माकर आँखों से चिपक जाती है। हरे भरे खेत में जैसे लहलहाती

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एकता और सद्भाव की टोली- होली

पलट के ना देखूँगी जो मुझे मिला नहीं,इस होली कोई शिकवा कोई गिला नहीं। छांछ और भांग का छायेगाजो खुमार,हंसी से लोट पोट हो जायेगा,होगा

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