शेषमणि शर्मा 'शेष'
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शेषमणि शर्मा 'शेष'

पिता का नाम- श्री रामनाथ शर्मा, निवास- प्रयागराज, उत्तर प्रदेश। व्यवसाय- शिक्षक, बेसिक शिक्षा परिषद मीरजापुर उत्तर प्रदेश, लेखन विधा- हिन्दी कविता, गज़ल। लोकगीत गायन आकाशवाणी प्रयागराज उत्तर प्रदेश। Copyright@शेषमणि शर्मा 'शेष'/ इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

और जीवन

ऐषणाओं के सघन घन और जीवन। आनुषांगिक भी न हो पाया अकिंचन और जीवन। शांत पानी इतने कंकड़। अंधड़ों की पकड़ में जड़, आत्मा ह्रासित

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बूढ़ा बैल

पौरुषता हरियाली का नाम ही किसानी थी l आज मैं बूढ़ा बैल हूँ कभी जवानी थी ll निर्धनता घर में थी श्रम से उसे उबार

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माण्डवी

दिव्य मणि शोभित शुभी अभिसारिका सी। अवध की महानायिका परिचारिका सी।। भूमिजा का स्वयंवर पिनाक भंग, आ गयी थी देखने पितु मातु संग। गौरी पूजन

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गज़ल-बाखब़र होके मगर सोता रहा

बाखब़र होके मगर सोता रहा। तमाम रात सितम होता रहा।। मजाल समंदर की कुछ भी नहीं, माझी ही कश्तियां डुबोता रहा।‌। ये कैसा मर्ज़ है

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पाती

नैन नीर में मसि मिलाकर हमने लिख दी प्रिय को पाती। भावो को लिपिबद्ध सजाकर बैरंग भेजी प्रिय को पाती।। मन पक्षी विहरत अनन्त तक

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मृगतृष्णा

एषणाओं की धरा पर‌ पनपती मन मृग में तृष्णा। जीव को चौरासी घट पट तक घुमाती है मृगतृष्णा।। आशाओं की प्रबल सरिता प्रवाहित अविरल मनस

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प्रेम पिपासा

अपरिछिन्न अलौकिक अविरल निश्छल सुसंस्कार कहां है। सदा से विलसित रहने वाली प्रेम सुधा रसधार कहां हैं। नव मालिका कली से भंवरा कहता है, सदा

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कैसे बताउँ यार

क्या गुजरी थी दिल पर कैसे बताउँ यार। पीहर को जा रही मेरी पत्नी पहली बार।। मधुमास का मौसम था शादी मेरी हुई थी। पत्नी

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प्रेम रस

जीवन पथ अति कठिन कंटक घनेरे। प्रेम रस का पान कर मन मधुप मेरे।। यह समूची सृष्टि ऐषणित तंत्र है, प्रेम ईशाकार परम स्वतंत्र है।

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