बड़का पाँड़े
महान व्यक्तित्व के धनी बड़का पाँड़े को कौन नहीं जानता। पूरे तहसील में उनका नाम लेते ही अनायास ही लोगों के मुख से निकल जाता
महान व्यक्तित्व के धनी बड़का पाँड़े को कौन नहीं जानता। पूरे तहसील में उनका नाम लेते ही अनायास ही लोगों के मुख से निकल जाता
मालिनी अभी शहर में नयी-नयी आयी थी। उसे शहर तथा वहाँ के लोगों के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। वह तो ठहरी गाँव की
ये जीत का जश्न जलता रहे भले हमारी हार हो सिर्फ हमीं से प्यार हो।। जल रहे हैं लोग यहाँ, देख तेरी स्वच्छंदता को रोक
विखराता सौरभ सुगंध मैं जोर – शोर से खिला हुआ। काँटों से भी मिला हुआ।। अभिलाषा मेरी यह है, सबको सुख दे जाने को शांति
इस शीत के मौसम में तुम जेठ दुपहरी बन आना। रोम-रोम में छा जाना।। मैं अवाक रह गया, देख तुम्हारी मूरत को कैसे उतारुँ दिल
इस हाड़ कँपाती ठंडक में यदि ऐसा कुछ हो पाता। उच्छ्वासों से साँस मिले तो सारा ठंडक खो जाता।। गर्माहट तन की पा करके थोड़ा
चहुंओर दिख रहा पानी – पानी कीचड़ से गीली चूनर धानी। बच्चे कागज की नौका दौड़ाये हाल नदी की वही पुरानी।। खतरों से वह खेल
नये साल में मस्ती करते आया लल्ला हू-हल्ला – हू हल्ला।। नये – नये सब कपड़े पहने नारी लादे ऊपर गहने और किशोरियों के क्या
ओसों की लड़ियों में सूरज खिला सुकून कुछ जीवन में जा के मिला मस्ती में तूं मुस्कराती रहे प्यारा जन्मदिन मनाती रहे।। हवाओं में सर्दी,
आओ हम अभिनंदन करते उड़ रहे गुलाल का आ रहे नये साल का।। भ्रमर गुनगुनाते, खिलती हैं कलियाँ महँ – महँ महँकते, चौराहे औ गलियां।