पंचख शांति
ददुआ का जीवन खेती किसानी में व्यतीत हुआ। न ऊधौ का लेना न माधव को देना। ददुआ सदा अपने बैलों को प्यार करता और उसके
ददुआ का जीवन खेती किसानी में व्यतीत हुआ। न ऊधौ का लेना न माधव को देना। ददुआ सदा अपने बैलों को प्यार करता और उसके
नजरें मिलाने को बेताब थे गर मिले तो ये क्या हो गया ख्वाब – ख्वाबों में ही खो गया।। वासना होती क्षणिक है, जलधार मे
भारतीय परिधान सुंदर क्यों विमुख हैं नारियां खूब फबती सारियाँ ।। माँग में सिंदूर लठवा, तन सुशोभित सारी लसे देखकर मन पथिक का, बरबस उसी
कैद कर कब तक रखोगे मैं सदा दुनियां से हारी क्या कर रहा पागल मदारी।। प्रतिबंध पग-पग पे लगाया, लगाम तूं इतना कसा असत् जाल
पात्रता तो मुझमें कहाँ है फिर भी अभिनय कर रहें हैं सोंच में तेरे मर रहे हैं।। देखने को उर में मेरे, उठ रही अभिलाष
प्रतिबिंब पर मत टिकें बिंब कुछ तो और है मनुज जग का सिरमौर है।। सिंधु के उद्दाम लहरों को, नाप डाला है मनुज हवाओं पे
दामिनी दमकी गगन में फिर निराशा छा गयी वो पास कैसे आ गयी।। टिकते नहीं रिश्ते पुराने, जग में ऐसा वाद है जनक सुत संग
चहुंओर दिख रहा पानी – पानी कीचड़ से गीली चूनर धानी। बच्चे कागज की नौका दौड़ाये हाल नदी की वही पुरानी।। खतरों से वह खेल