बाबा साहेब अम्बेडकर को समर्पित
अंधेरा बहुत था, मगर आगे बढ़ने चला था। पढ़ना मना था, फिर भी पढ़ने चला था।। बहुतों ने चाहा हराना उसे, अकेले ही दुनिया हराने
अंधेरा बहुत था, मगर आगे बढ़ने चला था। पढ़ना मना था, फिर भी पढ़ने चला था।। बहुतों ने चाहा हराना उसे, अकेले ही दुनिया हराने