मौत : कुछ शब्द चित्र
कोरोना महामारी के द्वितीय चरण के भयावह दिनों के कुछ शब्द चित्र 1.सड़कों पर बेख़ौफ़ टहल रही है मौत |दिन होते ही पसर जाता है
कोरोना महामारी के द्वितीय चरण के भयावह दिनों के कुछ शब्द चित्र 1.सड़कों पर बेख़ौफ़ टहल रही है मौत |दिन होते ही पसर जाता है
एकअब लिखे नहीं जातेऔर न भेजे ही जाते हैं प्रेम पत्रकोई लिख भी लेता हो गुपचुपया मन ही मन गुन लेता हो ख़त का मज़मूनमगर
वे जब भी रोशनी में आते हैं,उन्हें मुँह चिढ़ाती है उनकी परछाईं |कभी छोटी, कभी बड़ी,कभी प्रश्नवाचक,कभी विस्मयादि मुद्राओं में आकार लेतीउन्हीं के अस्तित्व का
1.कुछ न कुछ बदलेगा जरूरक्यों कि बदल गया है मौसमदीवारों पर टंग गए हैं –हरे-भरे दृश्यों वाले नये कैलेण्डरकुछ और रंगीन हो गए हैंडालियों पर