आनन्द गिरि मायालु
आनन्द गिरि मायालु

आनन्द गिरि मायालु

(कवि, लेखक, पत्रकार, समाजसेवी एवं रेडियो उद्घोषक) शिक्षा : स्नातक पेशा : नौकरी रुचि : लेखन, पत्रकारिता तथा समाजसेवा देश विदेश की दर्जनों पत्र पत्रिका में कविता, लेख तथा कहानी प्रकाशित। आकाशवाणी लखनऊ, नेपाल टेलीविजन तथा विभिन्न एफएम चैनल से अंतर्वाता तथा कविताए प्रसारित। भारत तथा नेपाल की तमाम साहित्यिक संस्थाओं से सम्मान तथा पुरुस्कार प्राप्त। पता : करमोहना, वार्ड नंबर 3, जानकी गांवपालिका, बांके (लुम्बिनी प्रदेश) नेपाल।Copyright@आनन्द गिरि मायालु/ इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

हमका बस पियार चाही(अवधी कविता)

पैसा सोना चांदी टीवी फ्रिज ना हमका कार चाही।मिलय मेहरूवा सीधी साधी सुन्दर व्यवहार चाही।।मानय हमका लरिका जस अस हमका ससुरार चाही।सालिक मानी बहीनी जस

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फुल कहय माली से(अवधी कविता)

मुरझान डेरान मुंह बनाए एक दिन फुल कहय माली से।का बिगारेंन तुम्हार हम जवानिम तुरत हमका डाली से।।काटत छाटत सबसे बचाए खाद अउर डारत पानी।बिरवस

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अन्न कय सम्मान करव(अवधी कविता)

अन्न ज़िंदगी मनाई सब कय अन्न कय सम्मान करव ।अन्न कईहां सुरक्षित राखव अन्न कय ना अपमान करव ।।मेहनत औ पसीना बहाई कय अन्न उब्जावत

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बिकाय गए भगवान(अवधी कविता)

समाज कहय जिनका दलित उनके जाति कुम्हार।माटी तोड़ी मरोड़ी कय बनावत जग कय पालनहार।।लरिके बिटिए अउर मेहरूवा पालत घर परिवार।वाह जमाना भगवान का आज सब

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भवा देश कय बंटाधार

राजा गए प्रजा जब आए भवा देश कय बंटाधार। बढ़ी गरीबी हल्ला बोल चारिव लंग बस भ्रष्टचार।। लोकतन्त्र मा लुटेक पाईन नेतक खुलीगा देखो पोल।

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प्रकृति से पियार करो

प्रकृति से जीवन हय हम सबके प्रकृति से पियार करव। प्रकृति कईहां नकसान ना पहुँचाव उके कहर से डरव ।। प्रकृति भगवान कय रुप प्रकृति

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खान पान पर धई लेव ध्यान

जागय से सोवय तक लईके खान पान पर धई लेव ध्यान।रोग बिमारी नियरे ना आई होई जाई सगरिव कल्यान।।दस तक खटियप सोव रात मा उठय

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हम हन दलित नारी

तुम सब जने अछूत कहत, हम हन दलित नारी।गरीबी विभेद अन्याय, भूंख प्यास से हम मारी।।तुमरे घर कोई जानवर मरे तो दलित मर्द उठाईस हय

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चलो कोई सिप सीखा जाय(अवधी कविता)

गुजर बसर से उप्पर उठी कय चलो कोई सिखा जाय।हाथेस अपने चलो आज अपन मुकद्दर लिखा जाय।।बुद्धि संघेंन विवेक मिला उप्पर से स्वस्थ्य देंही दिहीन

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