बँटवारा
गर्मी का मौसम था। सुबह की ठंडी- ठंडी हवा रात की भीषण गर्मी से परेशान लोगों को अपने शीतल स्पर्श से मानो थपकियां लगा -लगा
गर्मी का मौसम था। सुबह की ठंडी- ठंडी हवा रात की भीषण गर्मी से परेशान लोगों को अपने शीतल स्पर्श से मानो थपकियां लगा -लगा
कल मैं छोटा सा नन्हां सा अनभिज्ञ शिशु था , कहां थी पहचान ,अपनों और परायों की , जिनसे थोड़ा सा लाड़ प्यार पा लिया
मन पतंग कर्म एक डोरी है, हरदम थाम के रखता हूं। फिर भी देखो उड़ता हीं जाता, थाम ना इसको पाता हूं ।। मन बावरा
कल तक तो चांद चमकता था, जाने क्यों मैला मैला सा हो गया । मधुबन में गुंजन करने वाला, कहां पता किस ओर गया ।।
बना लो राह खुद अपनी, मंजिलें दिख हीं जाएगी । यदि दृढ़ हो इच्छाशक्ति, मुश्किलें मिट हीं जाएगी ।। भले हीं लाख ओले अड़े होंगे,
जाग जाग रे ज्ञानी मानव, ज्ञान का दीप जला लेना। चकाचौंध की इस आंधी में, मानवता को ना खा जाना।। सोच जरा क्या पाया है