अरुण आनंद
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अरुण आनंद

कुर्साकांटा, अररिया, बिहार. Copyright@अरुण आनंद/ इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

बँटवारा

गर्मी का मौसम था। सुबह की ठंडी- ठंडी हवा रात की भीषण गर्मी से परेशान लोगों को अपने शीतल स्पर्श से मानो थपकियां लगा -लगा

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कल,आज और फिर कल

कल मैं छोटा सा नन्हां सा अनभिज्ञ शिशु था , कहां थी पहचान ,अपनों और परायों की , जिनसे थोड़ा सा लाड़ प्यार पा लिया

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मन पतंग

मन पतंग कर्म एक डोरी है, हरदम थाम के रखता हूं। फिर भी देखो उड़ता हीं जाता, थाम ना इसको पाता हूं ।। मन बावरा

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कल तक तो चांद चमकता था,

कल तक तो चांद चमकता था, जाने क्यों मैला मैला सा हो गया । मधुबन में गुंजन करने वाला, कहां पता किस ओर गया ।।

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मंजिलें

बना लो राह खुद अपनी, मंजिलें दिख हीं जाएगी । यदि दृढ़ हो इच्छाशक्ति, मुश्किलें मिट हीं जाएगी ।। भले हीं लाख ओले अड़े होंगे,

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चेतना संदेश

जाग जाग रे ज्ञानी मानव, ज्ञान का दीप जला लेना। चकाचौंध की इस आंधी में, मानवता को ना खा जाना।। सोच जरा क्या पाया है

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