कान्हा तोहर मुरलीया जब जब बाजे
तब–तब पनघट तीरे राधा नाचे
कान्हा तोहर मुरलीया जब जब बाजे।
मोर ,पपिहा सब मधुर स्वर में मगन
धरती ,आकाश में उमड़ती है प्रेम तरंग ।
स्वर्ग से अप्सराएं मचलती है देख प्रसंग
भूलोग , पाताल में बस एक ही है रंग।
जब जब तोहार आने की आहट
इस धारा पे साजे ।
कान्हा तोहार मुरलीया जब जब बाजे ।
तितलियां मुस्कुरा उठती
कलियां मधु से सरोवार हो उठती ।
सरोवर मीठी जलपान कराती
बादल आकाश में मधुर मुस्कान बढ़ाती।
जब –जब मन में मधुर संगीत साजे ।
कान्हा तोहार मुरलिया जब जब बाजे ।
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