दो सखियों का भाव विनिमय

जब हो बेला हमारी विदा की सखी
करके सिंगार मुझको सजाना सखी
मेरे सजने में कोई कमी ना रहे
ऐसी सुंदर सी दुल्हन बनाना सखी
देख मुझको पिया भी बहकने लगे
संग में मेरे हर दम ही चलने लगे
साथ छूटे ना ऐसे मिलाओ सखी
प्यार हरदम ही उनका मैं पाऊ सखी
साथ मेरे सदा प्यार उनका रहे
एक उनका ही अब आसरा है सखी
अब तो चल करके डोली पे बैठाइए
आंसुओं से पलक को भीगा जाइए
जैसे गाड़ी हमारी उधर को बढे
नयन पलकों को अपने बिछा जाइए
मम्मी पापा हमारे जो बैठे कहीं
पास उनके भी अब तू चली जाइए
तेरी बेटी वहां अब तो रानी बनी
बात करके दिलों को तो समझाइए
मम्मी पापा की आंखों में आंसू भरा
उनकी आंखों से आंसू मिटा जाइए
ना हो कोई शिकन तेरे चेहरे पे अब
सबके चेहरे पर अब तो हंसी लाइए
अब तो सब से बिछड़ कर के जीना पड़े
जीवन दस्तूर है ये निभाना पड़े
जब धड़कने लगे तेरा दिल ये कभी
तो समझ लेना यादों में डूबी सखी

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रचनाकार

Author

  • गिरिराज पांडे

    गिरिराज पांडे पुत्र श्री केशव दत्त पांडे एवं स्वर्गीय श्रीमती निर्मला पांडे ग्राम वीर मऊ पोस्ट पाइक नगर जिला प्रतापगढ़ जन्म तिथि 31 मई 1977 योग्यता परास्नातक हिंदी साहित्य एमडीपीजी कॉलेज प्रतापगढ़ प्राथमिक शिक्षा गांव के ही कालूराम इंटर कॉलेज शीतला गंज से ग्रहण की परास्नातक करने के बाद गांव में ही पिता जी की सेवा करते हुए पत्नी अनुपमा पुत्री सौम्या पुत्र सास्वत के साथ सुख पूर्वक जीवन यापन करते हुए व्यवसाय कर रहे हैं Copyright@गिरिराज पांडे/ इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

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