हम गौतमबुद्ध, की शांति हैं,
भगवान महावीर की, अहिँसा हैं।
बजरी के भी, लाल हमहीं,
कार्लमार्क्स वाले, सर्वअहारा हैं।
हाँ, हम अपनी, मजूरी ख़ुद ही,
कमाने वाले है,
हम लाल लं गोटि, वाले है।
विष्णुगुप्त की, रज^अर्थ नीति,
हम, अहं पे वहम, लूटाने वाले है।
हम, त्रिकाली के है,अर्द्ध चाँद,
विष सारा, पीने वाले है।
हा हम, वीर भरत, के अनुयायी,
मूढ़ भरत मतवाले है।
हम, आर्यावर्त के, सिंधी है
गंगा के, किनारें वाले है।
हाँ हम सब हैं, भारतवंसी,
वसुधैव कुटुंम्बकम वाले।
हम, आ गमन, गमन अ ज्ञानी है,
चैतन्य, संकीर्तन वाले है।
हम, उर से, सियाराम प्रिये,
बिहारी,
मन मोहन, मुकुन्द’ ग्वाले है।
हम जैसे भी है, और भी निखरेंगे,
गर, प्राकृतिक है, तो सुधरेंगे,
बाँकी नव, वर्ष का आना बाँकी है,
जो भी गुजरी, सब झाँकि हैं।।
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