हर बाज़ी जीती थी मैंने
हर बाज़ी जीती थी मैंने दिल ने खाई मात कहाँ
वाबस्ता हैं यादें जिनसे गुजरेगी वो रात कहाँ
घर से बाहर हमने एकदम दुनिया अलग बसाई थी
झुककर मिलते थे हम सब से दुश्वारी की बात कहाँ
हमसे घर की बात न पूछो गुजरा कैसे साथ न पूछो
रिश्तो में जो रहे अकेले जाएँ वो जज़्बात कहां
अल्फ़ाजों के मोती हमने महव-औ- साल बिछाए थे वक्त
के साथ बदलती है जो ऐसी अपनी ज़ात कहाँ
उम्र गुज़रती जाती है कुछ याद रवाँ इन सांसों में
तन्हाई का आलम है बस खुशियों की सौगात का
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