तुम्हारी बेख़ुदी के हम कभी तो राज़दाँ होंगे
तुम्हारी बेख़ुदी के हम कभी तो राज़दाँ होंगे
कभी कू-ए-वफा में फिर मिले तो हमज़ुबां होंगे
अना की बेख़ुदी होगी अभी कुछ फ़ासले होंगे
जहां मैं हूं वहां वो है अभी भी कुछ निशाँ होंगे
वो मेरी पार्साई हो खुदाया इश्क़ हो मेरा
उसी की बंदगी में फिर जमीन-औ-आसमां होंगे
शब-ए-ग़म की सहर हो फिर दुआओं की लहर हो फिर
जो रोशन हो मसर्रत से
वहीं अपने मकाँ होंगे
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