सूरज भी चाँद बन यादों से उलझ गया है l
तुम्हारी बातों का शजर जानें किधर गया है ll
बैठते थे, दोनों के जज़्बात जिसपर
बात सुन,चहचाती थी कोयल की तान जिसपर ll
इश्क़ की मिस्री पिघलती थी गर्म सांसों से ,
हवा संग बिखरती थी मुस्कान जिसपर ll
अधूरा ख़्वाब किरचन सा आँखों में रह गया है ,
तुम्हारी मुलाकातों का सहर जानें किधर गया है ll
गौधुली बेला में धुंधली सी शाम रहती थी ,
चाँद संग अपनी अधुरी मुलाकात रहती थी ,
अंधेरें होते थे यादों में उजाला भर कर,
रात भर करवटों में अपनी बात होती थी ll
अब दिल की धड़कनों का दीपक बुझ सा गया है l
तुम्हारी चाहतों का शहर जानें किधर गया है ll
सूरज भी चाँद बन यादों से उलझ गया है l
तुम्हारी बातों का शजर जानें किधर गया है ll
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