शांत रुदन
शांत रुदन अन्सुअन भी साथी मेरे
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अरे यह क्या!अचानक बंद हो गई
कहाँ गए सब आँसू आँखों के ?
सूख गए!
आवाज़ें निःशब्द हो गईं
पर ऐसा हुआ क्यों
रो तो रहें हैं लोग
अभी भी
पर
आँसू नहीं, अवाज़ें नहीं
शायद नियति बन गई है रोना
रोने की चरमावस्था
एक हिस्सा बन गया है जीवन का
दैनिक कार्यों और ज़रूरतों जैसे।
समय नहीं है आँसू बहाने का
और न अवाज़ें निकालने का
रो रहे हैं, काम किए जा रहे हैं
बस आँसू नहीं है,अवाज़ें नहीं हैं।
भयानक होता है आँसू
और रोने की अवाज़ें निकालना
पर उससे भी भयानक है
आँसू रहित शांत रुदन
यह शांत रुदन
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