तुम्हें क्या लिखूं
मनमोहनी हो तुम,
मन के भीतर रहने वाले
क्या मैं तुमको मनमीत लिखूं…
दिल को तुम बहलाती हो।
ग़र इज़ाजत हो तुम्हारी
क्या मैं तुमको दिलजीत लिखूं।
मन के भीतर रहने वाले….
ग़म से मेरा नाता टूटा
मुश्किलों से जैसे साथ हो छूटा।
तुम हो तो खुशियां हैं मेरी
क्या मैं तुमको प्रिये अज़ीज़ लिखूं…
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