मौसम के भी गजब नजारे,
लगते कितने मन को प्यारे ।
कभी शरद तो कभी बसंत,
जब ग्रीष्म ऋतु से मन घबराए,
जब एक पल भी चैन न आए ।
तब रिमझिम बारिश लेकर के,
मनभावन सावन ताप मिटाए ।।
घनघोर बदरा छाए नभ पर,
गर्जन कर अति शोर मचाए,
अम्बर पर देख घिरे बदरा ।
कृषक मन में मोद मनाएं
फसल झूम झूम के लहराएं
हम ईश्वर को शीश झुकाए ।।
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