अगर मुझ पर कभी तेरा इशारा हो गया होता
डूबती धार में मुझको किनारा मिल गया होता
कभी भी लड़खड़ा करके न गिरता फिर तो जीवन में
अगर मुझको तुम्हारा ही सहारा मिल गया होता
मैं गुल जैसा ही खिलता अपने जीवन के बगीचे में
तुम्हारे प्रेम के जल से अगर सीचा गया होता
जमी पर ही चमकता चांद सूरज की तरह मैं भी
निगाहों का तेरे तारा अगर मैं बन गया होता
देखकर खुद की कमियां जिंदगी खुद ही सुधर जाती
अगर खुद की निगाहों में बुरा जो बन गया होता
सदा पहलू में तेरे रहकर ही जीवन बिताता मै
कहां रहता है गर तेरा ठिकाना मिल गया होता
हुनर मै सीख लेता मुस्कुराने का भी जीवन में
मुझे भी मुस्कुराने का वजह जो मिल गया होता
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