आज अमावस रात अंधेरी उस पर दीप जलाएंगे
करके उजाला इस जग में हम दूर अधेरा भगाएंगे
सब कुछ जगमग जगमग करके मन का भाव जगायेंगे
रोशनी की इस आभा से जीवन सबका चमकाएंगे
जगमग होगी पंक्ति यहां पर तेल का दीप जलाएंगे
अपने गुण के दीपक से ही सबको राह दिखाएंगे
करके उजाला इस जीवन में दिल में प्रेम जगायेंगे
रहे कभी ना कोई भूखा सबको आज खिलाएंगे
महलों में दीप जले हो भले कुनबो में दीप जलाएंगे
सब को लेकर साथ में अपने आज दिवाली मनाएंगे
भरकर सुगंध इस जीवन में सब का जीवन महकाऐगे
स्वयं प्रकाशित होगे और जग में प्रकाश फैलाएंगे
सूर्य चंद्र ना बन मै सकूं पर बन तारा टिमटिमांएगे
काली रात अंधेरी में भी सारे गगन पे छाएंगे
धरती से लेकर अंबर तक का साथ यहां दे जाएंगे
बनकर उजियारा जीवन में सबको पथ दिखलाएंगे
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