कल तक तो चांद चमकता था,

कल तक तो चांद चमकता था,

जाने क्यों मैला मैला सा हो गया ।

मधुबन में गुंजन करने वाला,

कहां पता किस ओर गया ।।

कल तक तो………

देख बदरिया मोर के जैसे,

जिनके पांव थिरकते रहते थे ।

इस डाली से उस डाली तक,

जो कौतूहल क्रीड़ा करते थे ।।

जीवन का रंग सदा होठों पर,

लेकर पंचम स्वर में क्यों खो गया।

कल तक तो चांद….

आधर सुधा रस सावन सा बरसात,

बूंद बूंद बन टप टप टपकत ।

नव किसलय के कोमल तरु से,

कुहुक कुहुक कोयल सन कुहकत ।।

नव यौवन वो इंद्रधनुष सा,

क्यों दुपहर का तपता सूरज हो गया ।।

कल तक तो चांद….

बन पराग को कुसुम कमल का,

सौरभ बन वो सुरभित करता था।

अरुणोदय की स्वर्णमयी लाली से,

हर जीवन की रंगोली गढ़ता था।।

वो पूनम का चांद चमकने वाला,

जानें किस अंधेरे में खो गया ।।

कल तक तो चांद चमकता था।

जाने क्यों मैला मैला सा हो गया ।।

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रचनाकार

Author

  • अरुण आनंद

    कुर्साकांटा, अररिया, बिहार. Copyright@अरुण आनंद/ इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

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