गीत

ताली बजा रहा है कोई

कोई बैठ हाथ मलता है

हर्ष-विषाद समन्वित जीवन

ऐसे ही अबाध चलता है !

स्नेह-स्वांग सब हैं दिखलाते

लाभ-लोभ के रिश्ते-नाते

बाहर-बाहर छोह छलकता

भीतर-भीतर छल पलता है!

वांछित कब ,कितना होता है?

कदम-कदम पर समझौता है

जीभ मिलाती है हाँ में हाँ

मज़बूरी में जी जलता है !

झूठी क़सम ,वायदे झूठे

जुड़ने से पहले मन टूटे

अन्दर शून्य फैलता जाता

कल के लिए आज टलता है

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रचनाकार

Author

  • डॉ रवीन्द्र उपाध्याय

    प्राचार्य (से.नि.),हिन्दी विभाग,बी.आर.ए.बिहार विश्वविद्यालय,मुजफ्फरपुर copyright@डॉ रवीन्द्र उपाध्याय इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है| इन रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है|

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