माँगना न गीत अब गुलाब के
ज़िंदगी की हर तरफ बबूल !
बतिआयें प्यार, यार!किस तरह?
पतझरी उदासी है रू-ब-रू
क़ैद में पड़ी बहार किस ज़गह ?
कटे पंख स्वप्न-विहग तड़पते
मुरझाए हसरतों के फूल !
पनघट पर खेल रहा सन्नाटा
चौपाली चहक कहीं खो गयी
नज़र नगर की लग गयी शायद
गँवई मस्ती भी गुम हो गयी
पंच भी प्रपंच में लगे हुए
दे रहे विवादों को तूल !
बाबुओं पर बैठ गयीं कुर्सियाँ
फरियाद फाईल की फाँस में
अफ़वाहें बाँटती हुई हवा
दहशत है दिवस के उजास में
बैठ गये जिसके भी आसरे
झोंक गया आँखों में धूल !
आदमी से भयभीत आदमी
दरम्याँ दिलों के बहुत दूरियाँ
अपना साया भी छलिया लगे
क़दम -क़दम कितनी मज़बूरियाँ !
हरे-भरे वन घटते जा रहे
सिमट रहे नदियों के कूल !
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