आँखों का होता इशारा गर कभी मेरी तरफ
चांद तारों का बदलता रूख सदा मेरी तरफ
लड़खड़ा गिरता कभी ना जिंदगी के मोड़ पर
तेरी बाहों का सहारा होता गर मेरी तरफ
मैं चमन के फूल जैसा रोज खिलता डाल पर
देखती नजरें तेरी गर प्यार से मेरी तरफ
मुरझराता ना वगीचा जिंदगी का फिर कभी
प्यार का ये जल कभी आता अगर मेरी तरफ
मैं अंधेरे में न रहता इस जमाने में कभी
रोशनी गर चांद की होती कभी मेरी तरफ
बन के बालों का मैं गजरा गर महकता रात दिन
बैठकर गुमसुम सा क्यों मैं घूरता उसकी तरफ
मय भरी आंखें छलकती गर मुझे मिल जाती तो
जाम पीने को सदा क्यों जाता मैं उसकी तरफ
बुरा मुझको साबित करता है जमाना आज भी
सब ही उसके साथ हैं कोई नहीं मेरी तरफ
इस जमाने की न नजरें अब उठे मेरी तरफ
देख कर के सच को गर तू बोल दे मेरी तरफ
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