सर्द रातें

होती हैं बहुत कष्टदायी यह सर्द रातें,

विशेषत: उनके लिए जो घरों में रहना चाहते ।

मज़बूरी और भाग्य की ठोकर ना जानें

वो बेचारे कितनी खाते ,

अलाव और अपर्याप्त साधन के सहारे

बीता देते यूं ही वो कितनी ही सर्द रातें ।।

वास्तव में भी बहुत कठिन है जीवन उनका 

नहीं होता घर – बार जिनका ।।

नियति भी निष्ठुर हो जाती हैं बहुत,

कितनो की तो हो जाती यूं हीं मौत ।

अगर आपको मेरी ये कविता

कुछ समझ आई,

तो उनके दुःख को ध्यान रखकर,

दे देना उनको भी कुछ कम्बल और रजाई।

वो भी रहते इस आस में,

मिल जाती कम्बल या रजाई

इस सर्दी के मास में

सब तो सो रहे मजे से अपने आवास में,

कुछ तो सर्दी भी बीता रहे विलास में ।।

हे प्रभु कोई तो ऐसा करो,

जो हो गर्म कपड़े और कंबल भी

मेरे पास में ।

नहीं तो अधिक समय नहीं लगेगा,

बदलने में मेरे तन को लाश में ।।

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