हम ग़ज़ल किसको सुनायें,बहुत हैं बहरे यहाँ
होंठ पर ताले लगे हैं,साँस पर पहरे यहाँ !
सतह पर जो तैरता है मिल रहा मोती उसे
डूब ही तो गया जो उतरा किया गहरे यहाँ !
प्यास की मारी हमारी फसल कब से रो रही
पर बरसता नहीं बादल – सिर्फ़ घहरे है यहाँ!
पास पैसा आपके तो हमसफ़र की क्या कमी ?
जेब खाली हो गयी,फिर कौन ठहरे है यहाँ !
इश्तिहारों के क्षितिज पर चमकता है आफ़ताब
दर-हक़ीक़त सघनतर ही हो रहे कुहरे यहाँ !
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