रिश्तों की बात हो।

जिस्मों के भीड़ में अब रिश्तों की बात हो,
हैवानियत से मिलचुके अब  फरिश्तों की बात हो।
मुहब्बते सरजमीं से कर   लाखों ही  मर-मिटे,
अब तो बतन के खातिर ज़िंदगी की बात हो।

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रचनाकार

Author

  • प्रभात रंजन चौधरी

    स्नातकोत्तर(हिन्दी) सम्प्रति- शिक्षक (हिन्दी) के रूप में सीतामढ़ी,बिहार में कार्यरत|Copyright@प्रभात रंजन चौधरी इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

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