युग का युवा, अब धुंध, तम में खो रहा है ,
लक्ष्य साधे,आंख में सपने लिए सो रहा है l
हर रोज़ हिम्मत की सड़क पर पैर रखता,
जग की हंसी को सोच, वापस पैर करता ll
लड़ता लड़ाता ख़ुद को आगे भी बढ़ाता,
लेकिन भटकता दिगभ्रमित होता रो रहा है ll
युग का युवा, अब धुंध, तम में खो रहा है ,
लक्ष्य साधे,आंख में सपने लिए सो रहा है l
कौन, देखो उनको राह अब दिखला सकेगा ,
आसमां के अंधेरों को कौन दूर भगा सकेगाll
ज़िंदगी की मैली चिथड़ी चादरों को,
अब कौन जादूगर रफू करवा सकेगा ll
यूं तो वो कोशिश अपनी पूरी कर रहा है
गीत अधरों पर लिए संगीतमय खुद हो रहा है ll
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