मुझे रात सँवर जाने को कहती है
सुनो
नींद आँखों में ठहर जाने को कहती है
अजब सी बात थी जिसने मुझे महफूज रखा था
कोई आवाज़ है लेकिन बिखर जाने को कहती है
जरा आवाज तो मुझको कभी मुझको बुलाओ तो
गुलों के रंग बिखरे हैं कभी इनको सजाओ तो
अजब से ख़्वाब हैं जिसमें मिली वो बेजुबानी है
कोई फ़रियाद है शायद ठहर जाने को कहती है
ज़रा देखो पलटकर तुम मचल कर साँस घुलती है
घुला वो आसमाँ देखो जहां से रात खिलती है
कोई एहसास धड़कन सा किसी दीवार पर उगता
किसी अल्फाज की आहट मगर जाने को कहती है
घुला है शाम से कोहरा गिरी कुछ बूँद शबनम सी
कहीं पर याद लम्हों की मिली खामोश धड़कन सी
शज़र से टूटते पत्ते सिमटती साँस लंबी सी
चले आना पलट कर तुम अगर आने को कहती है
सहर से भीगती पलकें वो सदियों की जुदाई भी
वो आंखों में कटी सदियाँं वो माज़ी की गवाही भी
किसी आवाज़ का लहज़ा कोई ख़ामोश सा साहिल
यह तुम तक लौटती राहें निखर जाने को कहते है