महलों से आती आवाजें

महलों से आती आवाजें

महलों से आती आवाज़ें

राजाओं के महल शांति के प्रतीक
नहीं हैं खून के छींटों से निर्मित हैं
कितने ही कर लगाये गयें होंगे आवाम के जबड़ों पर
तब जाकर खड़ी हुई होंगी ये अनसुनी दीवारें

महल के हर झरोखे से ताजी हवा नहीं
एक गंध आती हैं स्त्री गुलामी की
महल की नींव पत्थरों पर नहीं हैं
वो खड़ी है सर्वश्रेष्ठ मजदूरों की मेहनत पर
राजाओं के महल की दीवारें शौर्य सें नहीं
जगंल के विज्ञापन से ढ़की हैं
कितने ही शेर धोखे से मारे गए होंगे
फिर बनाई गई होगी एक वीरकहानी
मगर दीवारों को सब पता हैं

कितने ही राज पड़े हैं महल की बावड़ियों में
कितने ही सख्त फरमान टंगे हैं सिहांसन पर
मगर विरोधाभास गर्दन झुकाए खड़े हैं
कितनी ही दासियों ने चुकाई हैं रानीयों की मेहनत
राजाओं के बिस्तर पर,
कितने ही नौकरों के सीने के बाल
रानीयों के जुल्फों में लटके होंगे
कितने ही रनिवास लेटे हैं एक अन्तर्वासना से सटे हुए
मगर फिर भी सब जगह शांति हैं
क्योंकि महल की दीवारें बोलती नहीं हैं

लटकती तलवारों की धार से शुरवीरता नहीं
लौहारों की छटपटाहट टपकती हैं
भित्तिचित्रों में गुलामों की आंखों में दया कम
राजाओं के राज़ ज्यादा तैर रहे हैं
राजकैदबागो से कितनी ही कोयले लौट गई होंगी
बिना गीत गाये
कई गर्भधान चिड़ियों के घौंसले निलम्बित कियें
होंगे राज्यादेश पर
अनगिनत दास दागे गये होंगे चोंच भर गलती
पर ,
बहुत सी दयनीय आवाज़ें आती हैं
राजमहल के थोबेड़े से
मगर सब की सब प्रतिध्वनित हो जाती हैं
राज्य का गुणकारी आदेश बनकर,

वो छल की गाथाएं अब चलती चलती
हमारे पीढ़ियों के कमर पर ….
सफ़र करते करते आ गई हैं हमारे घरों तक।
अब हमारे घर, घर नहीं महल हो गये है।
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रचनाकार

Author

  • Bilal pathan

    परिचय :- अर्द्ध रेगिस्तानी जिले के बिलाल पठान का जन्म 18 मार्च 1985 में सीकर जिले के खीरवा गांव में हुआ ।वहीं पर उच्च प्राथमिक शिक्षा हुई उसके बाद उच्च शिक्षा लक्ष्मणगढ़ तहसील में हुई। पिताजी असलम पठान सातवीं पास और माताजी फातमा बानों शब्द रूप से निरक्षर हैं।कवि का प्रथम काव्य संग्रह 'अब पेड़ फल बेचेंगे' बोधि प्रकाशन से 2022 में आया है जिसको राजस्थान साहित्य अकादमी ने वर्ष 2023-2024 का "सुमनेश जोशी प्रथम कृति" पुरस्कार देकर सम्मानित किया गया है।मूल निवास=खीरवा,लक्ष्मणगढ़ सीकर सम्पर्क:- हाल निवास पता बिलाल पठान: उदयपुर

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