प्रेम

“पता है आज होली खेली जा रही है.” स्त्री स्वर

“हाँ…”, उदासीन पुरुष स्वर.

“तो…!!”

“तो?”

“हम भी खेलें?”

“हाँ.”

“लो अबीर का थाल.”

“थाल?”

“पहले ये भी तुम्हें कम लगता था.”

“तब बात कुछ और थी.”

“अब क्या हो गया?”

“अब ये बच्चे खेलते हैं, उनके अपने तरीके से, हमारा क्या?”

“बच्चे या वंशज? अब हम पूर्वज हो गए हैं.”

“हूँ… सालों गुज़र गए.”

“ऊंहूँ, शताब्दियाँ.”

“हूँ… होली तो पूरी बदल गई है.” 

“और तुम?”

“मैं… मैं, वही का वही, और तुम?” मुस्कराहट के साथ स्वर.

“वैसी की वैसी. फिर… हम तो खेलें… वही… वैसे ही”. आग्रह करता स्वर.

“चलो राधा…” अगले ही क्षण उत्साहित स्वर.

“चलो कान्हा…” पुलकित स्वर.

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रचनाकार

Author

  • डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी

    शिक्षा: विद्या वाचस्पति (Ph.D.), सम्प्रति: सहायक आचार्य (कम्प्यूटर विज्ञान), साहित्यिक लेखन विधा: कविता, लघुकथा, बाल कथा, कहानी, 11 पुस्तकें प्रकाशित, 8 संपादित पुस्तकें, 32 शोध पत्र प्रकाशित, 30 राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय सम्मान प्राप्त, डाक का पता: 3 प 46, प्रभात नगर, सेक्टर-5, हिरण मगरी, उदयपुर (राजस्थान) – 313 002. Copyright@डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी /इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

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