दिल का पंछी चाहता है, एक बसेरा चाह का
ये कभी ना कह सकूँगी ,तुमसे मेरी जा़त है
तुम खुदा हो ,या वफा हो तुमसे हर जज़्बात है
कह सकूँ ना फिर ये शायद, तुम मेरी औक़ात हो
तुमसे मेरी बंदगी है, और खुदा का साथ है
इन हवाओं में महक सी, है तुम्हारी रात दिन
फिर से तुमने छू लिया है, फिर तुम्हारी बात है
फिर तुम्ही से आशना है, फिर वही सौगात है
फिर मेरी आवारगी को, क्यों तुम्हारी आस है
दिल का पंछी चाहता है, एक बसेरा चाह का
फिर दुआ साथ थाम लो तुम, ये नई शुरुआत है
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