तमसो मा ज्योतिर्गमयः

तमसो मा ज्योतिर्गमयः

तमसो मा ज्योतिर्गमय
तम से प्रकाश की और
ले जाने की
अभ्यर्थना ।
प्रकाश
नैराश्य के विरुद्ध
प्रबल उत्साह का संघोष है ।
मन का संकेत
अंधकार अधिक उत्तम माने है
और आत्मा का संकेत
प्रकाश ही उत्तम कहता है ।
अनिष्ठाओं का कोई मोल नहीं ।
आस्थाओं का ही वैभव है
कि मेरी संजोई प्रार्थना
तेरे काम बना देती है और
तेरी रखी अर्चना
मेरे काम बना देती है
प्रकाश धारणा है धर्म की ।
धर्म आत्मा है जगत की ।
जहाँ प्रकाश है
वहां ज्ञान है,
ऐश्वर्य है,प्रभुता है ।

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रचनाकार

Author

  • त्रिभुवनेश भारद्वाज "शिवांश"

    त्रिभुवनेश भारद्वाज रतलाम मप्र के मूल निवासी आध्यात्मिक और साहित्यिक विषयों में निरन्तर लेखन।स्तरीय काव्य में अभिरुचि।जिंदगी इधर है शीर्षक से अब तक 5000 कॉलम डिजिटल प्लेट फॉर्म के लिए लिखे।

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