अनमना दिन/हाँफती हवा
फैली हुई दूर तक
चुप्पी की चादर !
कोई पंजा- अदृश्य,अरुण
रेंगता है लताओं , शाखों पर
हरी-भरी पत्तिया/पीली पड़ जाती हैं
चू पड़ती हैं लाचार
पेड़ हो रहे हैं गंजे / डालियाँ बदशक्ल
लताएँ निर्वसना
पुष्पवृन्त विधुर/ठहाके लगा रहा पतझड़
जूझ रही हैं जड़ें भूमिगत
पतझड़ के प्रतिकूल
गहरे और गहरे
ज़मीन के भीतर/उतरने को आतुर जड़ें
जड़ें चिपकी हैं
मिट्टी-माँ के वक्ष से
पा रही हैं संजीवनी !
पता नहीं पतझड़ को
भींग रहीं हैं जड़ें जब तक
माटी की ममता से
पराजित होता रहेगा वह
डालियाँ बदरंग हो सकती हैं
बाँझ नहीं
फूलेंगी-फलेंगी डालियाँ
लताएँ फैलेंगी
गायब हो जाएगा
पेड़ों का गंजापन
परदे के पीछे से कूकेगी कोयल
पता नहीं पतझड़ को
वह छींट रहा होता है
सन्नाटा बाहर जब
बो रहा होता है पेड़ों में पीलिया
जड़ें जी-जान से
बुन रही होती हैं अगला वसन्त!
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