चाररोजा ज़िन्दगी में क्यों भला तकरार हो?
जितने पल हासिल हमें हैं प्यार केवल प्यार हो ।
सजल हों कादंबिनी-सा ,सरल शिशु-मुस्कान- सा
वचन में मन हो समाहित,निष्कपट व्यवहार हो ।
इस चमन में फूल की कोई कमी तो है नहीं
अपने दामन में भला फिर एक भी क्यों खार हो ?
मुँह छुपाता सच फिरे औ’
झूठ का सम्मान हो
इस समय से कोई समझौता
न हो ,प्रतिकार हो ।
कौन जाने कब मिलन की बाँसुरी आवाज़ दे
वक़्त है थोड़ा अभी से सोलहों शृंगार हो ।
देखे जाने की संख्या : 394