रोक रोने पर,यहाँ हँसना मना है
कहाँ जाएँ , वर्जना ही वर्जना है !
आदमी के सिर चढ़ी है तर्कना
द्वेष मन में , अधर पर शुभकामना है !
शत्रु से बदतर हुआ जाता सगा
दोस्ती का कवच पहने है दग़ा
आस्था, विश्वास केवल वंचना है!
बिक रहा ईमान कितनी शान से
पुत्र मनु के हो रहे हैवान-से
मूल्य-निष्ठा,आन मानो बचपना है !
नगर नकटों का न ऊँची नाक रखिए
बद्धपिंजर विहग हैं क्यों पाँख रखिए
चापलूसी आज सच्ची साधना है!
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