किसी की निगाह में खटकता था मैं
जब उनके पनाह में रहता था मैं
वो राह में छोड़कर चल दिये
जिसको अपना कहता था मैं
लहरों से मैं न डरा आज तक
खुदा के पनाह में रहता था मैं
वो मिटा न सका मेंरे वजूद को
खुदा का सजदा करता था मैं
रौशन रहे सदा अंजुमन उनका
चिरागों की तरह जलता था मैं
बुरा न लगे उन्हे किसी गजल का
न कोई अशआर कहता था मैं
है ऑखो में उनके ऑसुयो का बसेरा
निगाहो में कैसे रह सकता था मैं
वो बादलो में छिप गये है अभी
जिसको चाँद कहता था मैं
फलक पे आशियाना था कभी मेरा
बिजलीयों से कहा डरता था मैं
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