अंहिसा का पुजारी
अंहिसा का पुजारी
चला गया हिंसा से तड़फकर
“हे राम” प्रतिध्वनि के साथ
छोड़ गया ….एक गर्मागर्म आज़ादी
एक तनी निडर लाठी
एक नमक के ढ़ेले को पुकारती ..दांडी
अंहिसा से कुलाचें मारता एक हिरण
छोड़ गया एक असहयोग …..हुकूमत को डराने के लिए,
बिखेर गया जाते -जाते सत्य की केसर….भारत के बदन पर,
दे गया सविनय से भरी आज्ञा धमकी …हुकूमत के कानों पर,
हमको दे गया.. चरखे से बनी कपड़े की कहानी ,
दे गया एक पथिक को ….बेखौफ सत्याग्राही सफर
मजदूरों में फूँक गया ..हड़ताल की आत्मा,
भर गया एक आंदोलन…..अस्वर गुलामों के गलों में
लिख गया कमजोर जिस्म के पृष्ठों पर आज़ादी का उपन्यास
चला गया एक शख्स अपने हिस्सें की आजादी
हमारे हिस्सें में डालकर उस व्योम की ओर
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