।। पतंग मेरी तुम उड़ने दो ।।
सर्दी में मुझे ठिठुरने दो,
हाथों को रील से कटने दो ।
पर पतंग मेरी तुम उड़ने दो,
दोस्तों की महफिल जमने दो,
आसमान को और भी सजने दो ।
सब छत पर आओ पतंगे लेकर,
मुकाबला मुझे सबसे करने दो ।।
पर पतंग मेरी तुम उड़ने दो,
पर पतंग मेरी तुम उड़ने दो
पराजय न है स्वीकार मुझे,
कैसे स्वाभिमान मिटाऊं मैं
मैं भी तो राणा का वंशज हूं,
भला कैसे पीछे हट जाऊं मैं
अब इस विशाल नभ पर,
चेतक को मेरे मचलने दो,,,
पर पतंग मेरी तुम उड़ने दो
पर पतंग मेरी तुम उड़ाने दो,,
हारना तो मुझको मंजूर नहीं,
मैं गिर गिर के उठ जाऊंगा ।
एक पतंग कटी जो मेरी,
तो मैं दस को काट के आऊंगा ।।
सूर्य उदय का संग्राम आज ये,
सूर्य अस्त तक चलाने दो,,,
पर पतंग मेरी तुम उड़ने दो
पर पतंग मेरी तुम उड़ने दो
चिड़ा, पटियाला, अंखियां वाली,
दो रंग की है और एक सुर्ख है काली,
अभी मांझा बहुत है चरखी में,
नभ पर इन्हें निर्भीक गरजने दो ।।
पर पतंग मेरी तुम उड़ने दो
पर पतंग मेरी तुम उड़ने दो
ओ सूर्यदेव जरा रुक जाना,
मुझे अभी और भी पेंच लड़ाना है ।
समय भी तो है पतंग के जैसे,
पता नही कब कट जाना है
दूसरों की खुशी में खुश हो जाऊं,
दूसरों के गम में मुझे रोने दो ।।
पर पतंग मेरी तुम उड़ने दो
पर पतंग मेरी तुम उड़ने दो
आशाओं को मन में आपने,
अब मुझको एकत्रित करने दो ।।
जीवन की कठिन चुनौती से,
सामना मुझे अब करने दो ।।
पर पतंग मेरी तुम उड़ने दो
पर पतंग मेरी तुम उड़ने दो ।।।