होली———————————————-१
बरस रहा है पिचकारी से, लाल गुलाबी रंग।
रंग बिरंगी बौछारों से ,पुलक उठा हर अंग।।
होली होली हुरयारों का ,गूँज रहा है शोर
गली-गली में नाच रहा है, मादक मन का मोर
नयी उमंगे लेकर आया यह फागुन का भोर
थिरक उठीं ढोलक की थापें,बाज रही है चंग।
चौबारे में मचा हुआ है,होली का हुडदंग।।
बरस रहा है—–
रंग दिये हैं बनवारी ने, राधा जी के गाल
खिले हुए हैं इक दूजे में,केसर और गुलाल
दृश्य मनोहर देख देख कर,मन में उठे उबाल
छलकी है आँखों में मस्ती, ज्यों पीली हो भंग।
रोम-रोम में जाग उठा है,सोया हुआ अनंग।।
बरस रहा है——
कभी सताया जी भर तुमने, कभी किया मनुहार
छेड़ छाड़ में मेरे साजन टूटा मुक्ताहार
मचल रहा है फिर नयनों में, वह.सोलह श्रंगार
तुम्हीं बताओ अब मैं आखिर,खेलूँ किसके संग।
रंग देख कर उठ आई है,मन.में नयी उमंग।।
बरस रहा है—
एक चाँद सा मुखड़ा चमका,फिर नयनों के पास
जिसे देखकर भर आया है,मन में नव उल्हास
मन को जाने क्यों है उसपर ,आज पूर्ण विश्वास
चलता रहता है मन भीतर ,उसका सुखद प्रसंग।
मीठे सपनों में उड़ती हूँ, जैसे उड़े पतंग।।
बरस रहा है——
कितने सावन बीत गये यूँ, रोती हूँ दिन रैन
दरवाज़े पर टिके हुए हैं,कबसे व्याकुल नैन
विरह अग्नि में झुलस गया है, अंतस का सुख चैन
साग़र जीने को अपनाऊँ,कहो कौन सा ढंग।
बिना तुम्हारे घर द्वारे का, हाल हुआ बदरंग ।।
बरस रहा है—–