होली का ये मास सुहाना, लगा गुलाबी रंग।
पीकर झूम रहे हैं देखो, नशा चढ़ा जब भंग॥
होली में बहका सजना तब, झूमें गाते फाग।
उमड़ रहा है सजनी के भी, तन-मन में अनुराग।
धर अधराधर रंग लगाते, खोये दोनों लाज।
उठने लगे हृदय के अंदर, मधुर प्रेम के साज।।
भंग पिए सब यों इठलाते, जैसे उड़े पतंग।
पीकर झूम रहे हैं देखो, नशा चढ़ा जब भंग॥
बनठन कर पी निकले घर से, लेकर हाथ गुलाल।
टोपी पहने होली खेले, रंग लगाये गाल।
साठ बरस में लगता छोरा, करता खूब धमाल।
नशा नशीला छैल छबीला, फँसा पड़ोसिन जाल।।
नहा गए तन – मन रंगों में, महक उठे हर अंग।
पीकर झूम रहे हैं देखो, नशा चढ़ा जब भंग॥
होली का जब चढ़ा नशा तब, गाता डिस्को गान।
भाभी के कर में कर धर कर, चलता सीना तान।
हरा, लाल,पीला रंगों से, रंगा बना सियार।
गुस्से में जाकर मैंने भी, बेलन किया प्रहार।।
इक – दूजे से मिलते सब हैं, मन में लिए उमंग।
पीकर झूम रहे हैं देखो, नशा चढ़ा जब भंग॥