हम से मुँह फेर कर चाँदनी जा चुकी ।
जी रहे हैं मगर ज़िन्दगी जा चुकी ।
फूल सारे चमन के उसे दे दिए ।
इन हवाओं की भी ताज़गी जा चुकी ।
नक़्श पा बस कहारों के बाक़ी रहे ।
ख़ुशबुओं से भरी पालकी जा चुकी ।
दिल में ख़ामोशियों की कतारें लगीं ।
खिलखिलाती हुई हर ख़ुशी जा चुकी ।
हम थे पत्थर किनारे पे बैठे रहे ।
वक़्त की झिलमिलाती नदी जा चुकी ।
पर कटे पल जुदाई के टलते नहीं ।
तितलियों सी मिलन की घड़ी जा चुकी ।
जब से रुख़सत हुई है ग़ज़ल रूह की ।
सिर्फ़ अल्फ़ाज़ हैं शायरी जा चुकी ।
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ग़ज़ल-संग्रह- ” क्या मुश्किल है ” से …..
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