ज़िन्दगी तो त्रासदी हुई
आँखों पर पट्टियाँ पड़ीं
कोल्हू के बैल बने हम
वंचना के वृत्त में फँसे
खींच रहे बोझ दम-ब-दम
एवज में मार-गालियाँ
उन्हें दास क्रीत चाहिए!
ख़्वाब सभी बुलबुले हुए
हसरतें भी हो गयीं हवा
पीर पार कर रही हदें
निगोड़ी कहाँ हुई दवा!
सिसकियों में डूब रहे हम
उनको संगीत चाहिए !
नहीं, एक-दो दफा नहीं
बार-बार हम छले गये
हमारे ही श्रम की सीढ़ियाँ
शिखरों तक वे चले गये
छाँछ को भी छछा रहे हम
उनको नवनीत चाहिए !
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