सुवासित शीतल सुखद बयार, भ्रमर मकरंद चखे स्वछन्द।
लोग कहते हैं तुम्हें बसंत, प्रणय प्रण के अद्भुत आनंद।।
सरसो के पीत हेम से पुष्प, कोयल की कू कू मधुर पुकार।
तना के साथ लता उन्मुक्त, विलासित लगता है संसार।।
आम में लगे मदमाते बौर, लहलहाते अति हरित सिवान।
चना अलसी के नीले पुहुप, धरा पर उतरा गगन महान।।
ज्योत्स्ना शुभित सलोनी रैन, कुटज में प्रियतम का सानिध्य।
सप्त जन्मों का सुफलित पुण्य, प्रफुल्लित हों जैसे आराध्य।।
मिटा आलस्य प्रमाद का दोष, बढ़ा तन मन में नव संचार।
अब भी आजाओ घर प्रिय कंत, सही न जाय मार की मार।।
फाग चौंताल के सुमधुर गीत, तान भरती हैं राग बसंत।
गूंजते ढोल मृदंग के ताल, नृत्यमय अवनी और अनन्त।।
विहंसती कलियों का लावण्य, प्रसारित करते कमल पराग।
किसलयों पर तुषार कण देख, उमड़ता है मन में अनुराग।।
प्रकृति में छाया है रसराज, असह्य होती अब मिलन की पीर।
कुसुमाकर में कुछ रहे न शेष , मेरे मनदीप आलिंगन वीर।।