सांसों का दरिया बहे , बंजर तन के बीच ।
पुण्यों की रसधार से , चल कर्मों को सींच ।
प्यारी सच्चाई नहीं , प्यारा है सम्मान ।
सर पर रख कर घूमते , अपनी झूठी शान ।
तुम दुनिया के सारथी , तुम हो ललित ललाम ।
कृष्ण तुम्ही परमेश्वर , तुम हो चारों धाम ।
मैं सागर हूं प्यास का , तुम गंगा की धार ।
गंगासागर हम बनें , तब हो बेड़ा पार ।
तुम गुलाब की टोकरी , रजनीगंधा प्राण ।
होठों पे रंगोलियां , नयन रेशमी वाण ।
गंगा यमुना सरस्वती , संगम एक महान ।
होत विसर्जित अस्थियां , प्राण करें इस्नान ।
दुनिया बड़ी ख़राब है , तोल मोल के बोल ।
मन में कड़वाहट भले , बातों में रस घोल ।
हर व्यक्ति में गूंजता , एक अनाहत नाद ।
कर सकते हैं आप भी , श्रृष्टि से संवाद ।
ये मन की यायावरी , ये तन का ठहराव ।
जीवन जैसे हो गया , बुझता हुआ अलाव ।
रात उतरती बाग में , चांद खिले आकाश ।
चंदन चंदन हो गया , मौसम का भुजपाश ।
जीवन में जब भी खिले , यौवन का उत्कर्ष ।
बरसे है मन प्राण में , बिना बात के हर्ष ।