सहरिन से पुरवा बही
पहुंची हमरे गांव
बिसरे राम जोहार अब
टोकैं लय लय नाव ,
सीतलता जल से गयी
बानिस् गयी मिठास
कुंवक् जगति से गयि
उजरि पुजनी दुबिया घास,
कौआ उड़ा बंडेर से
अबहीं लउटा नाय
होइगा सौदा प्रेम कै ,
अंखियौ फरकत नाय ,
न बाबा के कांध पर
नाती होत सवार
न आजी के खूंट मा
रहिगा बंधा परिवार ,
अब ढेबरी का बारि कै
के जोरत है हाथ
ढेबरी से तव आज कल
कोठरी है करखात ,
लयिगै पुरवा छोरि कै
चना,चबैना,भार
दूध दहिव अस काल भा
अहिरिन बनी सोनार !!
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