सवाल ये है

झूठ मूठ के बहकावे से
दिल को अपने बचा के रखना
बहुत कठिन होती ये डगर है
कदम को अपने संभाल रखना
तपन फिजाओं में अब बहुत हैं
घुटन अंधेरे में अब बहुत हैं
सभी दुखाते हैं दिल यहां पर
दर्द दिलों का भी अब बहुत है
जो दिल ये टूटा कभी तुम्हारा
जुड़ेगा ना फिर सवाल यह है
अगर जुड़ा भी कभी दुबारा
पड़ेगी गाठे सवाल ये है
सदा ही डाली पे खिलखिलाना
चमन में अपने ही मुस्कुराना
विखेर करके धरा पे खुशबू
नजर को सबके ही तुम लुभाना
मेल सदा ही बना के रखना
धूप से उसको बचा के रखना
हरण चीर का कभी ना होगा
पर्दे अपने बना के रखना
कहीं यह काला पड़े ना चेहरा
नजर का तेरे सवाल ये है
अगर जो उंगली उठी कभी तो
जिओगे कैसे सवाल ये है

Facebook
WhatsApp
Twitter
LinkedIn
Pinterest

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

रचनाकार

Author

  • गिरिराज पांडे

    गिरिराज पांडे पुत्र श्री केशव दत्त पांडे एवं स्वर्गीय श्रीमती निर्मला पांडे ग्राम वीर मऊ पोस्ट पाइक नगर जिला प्रतापगढ़ जन्म तिथि 31 मई 1977 योग्यता परास्नातक हिंदी साहित्य एमडीपीजी कॉलेज प्रतापगढ़ प्राथमिक शिक्षा गांव के ही कालूराम इंटर कॉलेज शीतला गंज से ग्रहण की परास्नातक करने के बाद गांव में ही पिता जी की सेवा करते हुए पत्नी अनुपमा पुत्री सौम्या पुत्र सास्वत के साथ सुख पूर्वक जीवन यापन करते हुए व्यवसाय कर रहे हैं Copyright@गिरिराज पांडे/ इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

Total View
error: Content is protected !!