झूठ मूठ के बहकावे से
दिल को अपने बचा के रखना
बहुत कठिन होती ये डगर है
कदम को अपने संभाल रखना
तपन फिजाओं में अब बहुत हैं
घुटन अंधेरे में अब बहुत हैं
सभी दुखाते हैं दिल यहां पर
दर्द दिलों का भी अब बहुत है
जो दिल ये टूटा कभी तुम्हारा
जुड़ेगा ना फिर सवाल यह है
अगर जुड़ा भी कभी दुबारा
पड़ेगी गाठे सवाल ये है
सदा ही डाली पे खिलखिलाना
चमन में अपने ही मुस्कुराना
विखेर करके धरा पे खुशबू
नजर को सबके ही तुम लुभाना
मेल सदा ही बना के रखना
धूप से उसको बचा के रखना
हरण चीर का कभी ना होगा
पर्दे अपने बना के रखना
कहीं यह काला पड़े ना चेहरा
नजर का तेरे सवाल ये है
अगर जो उंगली उठी कभी तो
जिओगे कैसे सवाल ये है
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