ये रंगीन कागज़ के रिश्ते सम्हालो ।
तुम अपनी वफ़ाओं के तिनके सम्हालो ।
महकने से पहले कहीं झर न जायें ।
मुहब्बत के मासूम गुंचे सम्हालो ।
हज़ारों निगाहें तुम्हे घूरती हैं ।
कहीं उड़ न जायें दुपट्टे सम्हालो ।
हमें अब करो तुम लहर के हवाले ।
वो महफूज़ उम्दा किनारे सम्हालो ।
वो ख़ुशबू मेरी ले के जाने लगे हैं ।
औ कहते हैं हमसे कि काँटे सम्हालो ।
तुम्हे कल को इनकी ज़रूरत पड़ेगी ।
हमारी दुआ के उजाले सम्हालो ।
तुम्हे एतबारे मुहब्बत नहीं था ।
तुम अपने अमल के नतीजे सम्हालो ।
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ग़ज़ल-संग्रह- ” क्या मुश्किल है ” से …..
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