सम्हले जमाना जरा कयामत ढाने का इरादा लग रहा है
खुद को बदलते दौर में आजमाने का वादा लग रहा है
हुस्न तो हुस्न है किसी में बढेगा तो किसी में नहीं
खुद को जिसने सम्हाला उसमें ज्यादा लग रहा है
अजीब कश्मकश में हुस्न भी रहा है दीवाने भी
ये कश्मकश का दौर नया कम पुराना लग रहा है
अपना क्या है मस्त मौला कलंदर रहो यही ठीक
लफ्ज़ मौला के दिए सजाने का ठिकाना लग रहा है
कोई उनसे काश कह दे आलम ये बेकरारी का
ज़ब से देखा है आलम आशिकाना लग रहा है
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