सम्हले जमाना जरा

सम्हले जमाना जरा कयामत ढाने का इरादा लग रहा है

खुद को बदलते दौर में आजमाने का वादा लग रहा है

हुस्न तो हुस्न है किसी में बढेगा तो किसी में नहीं

खुद को जिसने सम्हाला उसमें ज्यादा लग रहा है

अजीब कश्मकश में हुस्न भी रहा है दीवाने भी

ये कश्मकश का दौर नया कम पुराना लग रहा है

अपना क्या है मस्त मौला कलंदर रहो यही ठीक

लफ्ज़ मौला के दिए सजाने का ठिकाना लग रहा है

कोई उनसे काश कह दे आलम ये बेकरारी का

ज़ब से देखा है आलम आशिकाना लग रहा है

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रचनाकार

Author

  • विष्णु "सरहदे"

    पता :शॉप नंबर 6 "A" मार्किट,सेक्टर 4, भिलाई, पिन -490001. दुर्ग, छत्तीसगढ़, फ़ोन-7828112047. Copyright@विष्णु "सरहदे"/इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

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