संस्मरण

बचपन से ही संकोची स्वभाव होने के कारण मैं अपने में ही खोया रहता था |लोगों के बीच में उठना बैठना बातें करना मेरे लिए लज्जा का विषय था| जिसके कारण समाज के क्रियाकलापों एवं विचारधारा से मैं अनभिज्ञ था पैसे का मोह तो कभी दिल को छुआ तक भी नहीं था ,मैं सदा ही पैसे को नगण्य मानता था, कभी उसकी उपयोगिता नहीं समझा, अपने पूरे अध्ययन काल में अपने पास कभी पैसा नहीं रखा, जिसका कारण था कि मुझे पैसे की कभी आवश्यकता ही नहीं महसूस हुई, क्योंकि मुझे बाजार से कुछ खरीदना ही नहीं पड़ता था |पैसा सिर्फ कॉपी किताब पेन एवं विद्यालय फीस तक ही सीमित था |मुझे याद है जब मैं कक्षा दसवीं में पढ़ रहा था तो विद्यालय में एक साधु आया जो कुछ चौपाइयों को सुनाने के बाद अपना कमंडल प्रत्येक छात्रों के सामने लेकर गया, सभी ने कुछ न कुछ पैसे उसके कमंडल में डालें ,हमारे पास तो पैसा था ही नहीं तो मैं क्या देता ?जब साधु कमरे से बाहर गया तो कक्षा अध्यापक ने मुझसे पूछा क्यों गिरिराज तूने कितना पैसा दिया मैं लज्जित सा होकर सिर झुका लिया ,कक्षा अध्यापक ने मेरी भावना को समझते हुए कहा कोई बात नहीं यहां सब पढ़ने आते हैं कोई पैसा गांठ बांधकर थोड़ी लाता है ,अध्यापक को मेरे स्वभाव एवं घर की सारी परिस्थिति मालूम थी |कुछ देर रुकने के बाद कक्षा अध्यापक का भाव अचानक बदल गया ओ नाराजगी जताते हुए पैसा देने वाले सभी बच्चों को नसीहत देते हुए कहने लगे कि मैं कमाता हूं फिर भी कुछ नहीं दिया तुम कमाते नहीं फिर भी दे रहे हो आखिर क्यों ?देने का अधिकार उसे है जो कमाता हो |आप लोग कहां से पैसा कमाते हो घर में पैसे की कोई फैक्ट्री लगाए हो क्या जो दान दे रहे हो यह विद्यालय शिक्षा का मंदिर है ना कि दान का| मुझे यह सुनकर बहुत खुशी हुई और मन का भाव भी मजबूत हो गया की बहुत अच्छा है जो मैं अपने पास पैसा नहीं रखता |पैसा न रखने का एक फायदा यह भी था की पैसा है ही नहीं तो गिरेगा कैसे या कोई उसको चुरायेगा कैसे ?कोई चोरी का आरोप नहीं लगा पाएगा |मैं हर तरह से निश्चिंत रहता था घर में या बाहर कहीं भी पैसा पडा रहे तो मैं उसे छूता तक नहीं था क्योंकि मेरा विचार ही था कि जिसमें मेरा श्र्म नहीं वह मेरा अपना नहीं | पढ़ाई पूरी एवं विवाह होने के बाद भी पैसे का मोह मेरा कुछ नहीं बिगाड़ पाया एक दिन हमारी मां ने हमें कुछ पैसे देते हुए यह कहा कि इसको संभाल कर रखो भविष्य में काम आएगा मैं यह कहते हुए पैसा लेने से इनकार कर दिया कि मुझे पैसे की आवश्यकता नहीं मुझे माया मोह में मत फसाइए यह सब अपने पास रखिए मां ने कहा भविष्य में पैसे की बहुत आवश्यकता पड़ेगी इसको रख लो| जबरदस्ती पैसा मेरे हाथ में रख दिया मुझे पैसे से मोह तो था नहीं सो मैं बैंक जा कर सारा पैसा अपने खाते में ना डाल कर मां के खाते में डाल दिया जब यह बात मां को पता चली तो मां ने मुझे बहुत डांटा उसके कुछ ही महीने बाद हमारी मां का देहांत हो गया उसके बाद से ही मुझे पैसे की कमी महसूस हुई , पहले मैं पैसे से दूर भागता था आज पैसा मुझसे दूर भाग रहा है

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रचनाकार

Author

  • गिरिराज पांडे

    गिरिराज पांडे पुत्र श्री केशव दत्त पांडे एवं स्वर्गीय श्रीमती निर्मला पांडे ग्राम वीर मऊ पोस्ट पाइक नगर जिला प्रतापगढ़ जन्म तिथि 31 मई 1977 योग्यता परास्नातक हिंदी साहित्य एमडीपीजी कॉलेज प्रतापगढ़ प्राथमिक शिक्षा गांव के ही कालूराम इंटर कॉलेज शीतला गंज से ग्रहण की परास्नातक करने के बाद गांव में ही पिता जी की सेवा करते हुए पत्नी अनुपमा पुत्री सौम्या पुत्र सास्वत के साथ सुख पूर्वक जीवन यापन करते हुए व्यवसाय कर रहे हैं Copyright@गिरिराज पांडे/ इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

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